करोड़ों की लागत से बने मेडिकल कॉलेज सद्दरपुर अम्बेडकर नगर का बुरा हाल।
मेडिकल कालेज के अंदर की दीवारें पान मसाला और गुटका के थूक से लाल हो चुकी हैं।
वाशरूम के बदबू से मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है।
कई वार्डों के टाइल्स टूट चुकी है।
अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर इतनी लागत में बनी इमारतें कुछ ही सालों में कैसे खंडहर हो जाती हैं?
क्या इनकी मजबूती में कोई कमी है या फिर देखरेख करने वाली संस्थाओं की लापरवाही है?
लोगों के टैक्स का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खर्च होता है लेकिन जब बात उन सुविधाओं के लाभ उठाने की होती है तो सब कुछ सिर्फ हवा हवाई रह जाता है।
आखिर मानव जीवन की मूलभूत सुविधाओं के साथ ऐसा मजाक क्यों हो रहा है?
आखिर स्वास्थ्य विभाग पर इतना ज्यादा खर्च के बाद भी प्रशासन मौन क्यों रहता है?
आए दिन स्वास्थ्य मंत्री का दौरा जनपद में होता रहता है फिर भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन लापरवाही बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
सरकार आए दिन तमाम स्वास्थ्य योजनाओं के नाम पर अपना बखान करने में नहीं थकती। लेकिन जमीनी स्तर की हकीकत देखकर सरकारी अस्पतालों से विश्वास उठ जायेगा।
आखिर इन सब असुबिधाओं का जिम्मेदार कौन?
आखिर प्रशासन कब तक रहेगा मौन?